प्रशन्सा या आलोचना नहीं ,विश्लेषण आवश्यक ..........।
अनुच्छेद 370 समाप्त हो गया ,अच्छा हुआ। तीन तलाक पर कानून लाया गया अच्छा हुआ। राम मंदिर पुनर्निर्माण प्रारम्भ हुआ ,अच्छा हुआ। पिछले 8 -9 सालों में उरी,गलवान घाटी और CRPF की बस पर हमले के कुछ उदाहरणों को छोड़ दिया जाए तो आए दिन होने वाले आतंकवादी हमले नहीं हो रहे हैं,अच्छा हो रहा है। सनातन धर्म को जो मन इस देश में कई वर्षों पहले मिल जाना चाहिए था वो आखिरकार आज मिल रहा है,अच्छा हो रहा है। देश फिर से एकता के सूत्र में बंध रहा है ,अच्छा हो रहा है। महामारी से निपटने में विकसित देशों से कई गुना ज़्यादा हम सफल हो रहे हैं,अच्छा हो रहा है।
यह सब सोचकर ,सुनकर ,पढ़कर हर भारतीय को गर्व होगा और होना भी चाहिए। वैसे इस लिस्ट में और कई उपलब्धियां जोड़ सकते हैं हम। लेकिन यदि इतना ही बढ़िया चल रहा है सब तो फिर तेल 190 रुपये लीटर,पेट्रोल 113 रुपये लीटर क्यों है ?दवाइयां इतनी महंगी क्यों है ?हर चीज़ पर टैक्स देने के बाद भी सड़कें उखड़ी हुई ,सरकारी स्कूल ,ऑफिसेस ,अस्पताल बदहाल क्यों है ?समस्याएं सबको पता है पर जवाब कोई ढूंढना ही नहीं चाहता। ये हम सब जानते हैं की शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी देश की असल पूँजी होते हैं,मगर इन्हीं की हालत इस देश में सबसे बदतर है। बड़े बच्चों सर ज़्यादा प्राइमरी तक के बच्चों को पढ़ना कठिन होता है मगर प्राइमरी टीचर की इस देश में कोई इज़्ज़त नहीं करता। बच्चों को पास करने का नियम बना दिया है ,मगर ऐसे पास होकर करेंगे क्या ,कोई नहीं बतात।
इंजीनियरिंग कॉलेजेस धड़ल्ले से खोले जा रहे हैं मगर रोज़गार कहा से लाएंगे ,कोई नहीं बताता। बुलेट ट्रेन ले आए मगर उसका उधार इस देश की आने वाली कई पीढ़ियां चुकाएंगी ,इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। ये तो ऐसा है की आलीशान घर बनवाने के लिए हमारे दादाजी ने इतना कर्ज़ा ले लिया की उसे चुकाने में अगली दो पीढ़ियां लग गई। राज्यों की प्रतियोगी परीक्षा का हाल तो पूछिए ही नहीं। 71 नंबर वाला पास हो रहा है और 74 नंबर वाले का लिस्ट में नाम ही नहीं है। एक साल में 100 ठीक से नहीं बना पाते आयोग। मगर इनसे कोई सवाल पूछने वाला नहीं है। न्यायपालिका को किसी मुद्दे पर अपना निर्णय देने में बरसो लग जाते है।
बिहार के एक व्यक्ति के साथ ऐसा ही हुआ है। वह अपनी नौकरी पाने का केस तब जीता जब वो रिटायर हो चुका था। और आरक्षण का तो क्या कहना।।।।।।। आरक्षण का अधिकार मांगने वालो ने बाबा साहेब को पढ़ा और समझा होता तो ये हालात कभी पैदा नहीं होते। इस देश के सबसे काबिल वकील और सबसे शिक्षित व्यक्ति की जी भर कर आलोचना करते है हम मगर उनके बारे में जानना कोई नहीं चाहता की आखिर उन्होंने आरक्षण की व्यवस्था क्यों रखी। और उन्होंने तो दस सालों के लिए यह व्यवस्था राखी थी फिर इसका राजनीतिकरण क्यों किया गया ,इसका जवाब कोई नहीं देना चाहता। सवाल तो आरक्षण का लाभ प् चुके और पा रहे लोगों से भी पुछा जाना चाहिए कि अगर 75 सालों से लाभ मिल रहा है तो फिर अब तक पिछड़े क्यों हो ?
माना सवर्णों ने अत्याचार किया मगर पूरी व्यवस्था अगर साथ थी तब तो बात बन जानी चाहिए थी। अंबेडकर लड़ते रहे जीवन भर जिनके अधिकारों के लिए वो लोग आज केवल अपना उल्लू सीधा करने में लगे है। एक सवाल और भी है , पिछड़ी मानी जा रही जातियों में आपस में भी वही भेदभाव मूलक व्यवस्था विद्यमान है वो उनमे और सवर्णों के बीच में है। तो फिर सवर्णों से नाराज़गी क्यों ?और अंत में हम हर बात के लिए दोष देते हैं सरकारों को। क्यों देते हैं?सरकार या देश कोई खाने की चीज़ नहीं है कि कल तक अच्छी थी और आज उसमे फफूंद लग गई तो वो ख़राब हो गई है। ये एक व्यवस्था है जिसे हम सबने मिलकर बनाया है। नेता हम लोगों में से ही एक होते है। दुसरे ग्रह से नहीं आते ये। सच तो ये है कि हमारी ही आत्मा मर गई है।
सच यह भी है कि हमें सरकारों की या तो केवल आलोचना करनी है या केवल प्रशंसा। विश्लेषण कोई करना ही नहीं चाहता। तथ्यों के साथ कोई बात ही नहीं करना चाहता। मगर आवश्यकता इसी विश्लेषण की है। ताकि सरकारों को ,नेताओ को उनकी तारीफ के साथ साथ उनकी गलतिया बताई जा सके। और इस देश को रसातल में जाने से रोका जा सके। आवश्यकता इस बात की भी है कि चर्चा करते समय इस बात पर हम अंकुश लगाए कि फलां पार्टी ने भी यही किया। क्युकि अगर बहस का यही गलत तरीका जारी रहा तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को हर ओर से समस्याओ से घिरा देश देकर जाएंगे जहा न पानी होगा न साफ हवा न रहने के लिया ज़मीन और न ही रोज़गार। अगर होगा तो सिर्फ हाहाकार। इसलिए विश्लेषण करिये। प्रशंसा या आलोचना नहीं ,क्यूंकि समझदार लोग यही करते है।
जय हिन्द।
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